डमकच नृत्य
सबसे लोकप्रिय कोमल प्रकृति का नृत्य -गीत डमकच को माना जाता है। इसके नृत्य,गीत,रग,सरस, मधुर,सरल एवं लचकदार होते हैं। वाद्य के ताल नृत्य में उत्तेजना उत्पन्न करते हैं। मूलत: यह स्त्री प्रधान नृत्य गीत है । परंतु पुरुष भी इसमें सम्मिलित हो जाते हैं ।महिलाएं नृत्य के लिए कतार में हाथ -से -हाथ जोड़कर कदमों कलात्मक चाल से नृत्य करती है। लचकाने,झुकने ,और ,सीधे होने की नृत्य मुद्रा से गायनाहा तथा बजनिया में उत्साह बढ़ जाता है। इसमें महिला नर्तकों के दो दल होते हैं।एक दल गीत उठाता है,तब बजाने वाले अपनी साज छोड़ देते हैं। उसके बाद दुसरा दल उन गीतों की लड़ियों को दुहराता है।इसका क्षेत्र झारखंड और इसके सीमावर्ती राज्यों बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और बंगाल के सीमावर्ती जिलों के साथ असम के चाय बगान तथा अंडमान निकोबार द्वीपसमूह है।
डमकच प्रायः घर के आंगन में किया जाता है।घर परिवार के लोग मिलकर नृत्य करते हैं। कहीं कहीं आंगन के पींडा या कोने से अर्थात् नृत्य मंडली से बाहर बाजे बजाए जाते हैं। राग,लय,ताल तथा कदमों की चाल बदल जाती है।डमकच नृत्य गीत से सराबोर कर देने वाला नृत्य है।यह नृत्य विवाह -शादी तय हो जाने के बाद तथा वर कन्या के घर -आंगन में रात्रि में होता है।डमकच खेलने वालों के लिए डमकच हंडिया सदानों के घरों में भी उठाया जाता है तथा खेलने वालों को एक एक कटोरा डमकच हंडिया थकान मिटाने के लिए पिलाया जाता है।यह नृत्य देव उठान से प्रारंभ होकर रथयात्रा की समाप्ति तक चलता हैं। वेशभूषा सामान्य से कुछ विशेष होती है।जब हल्की रोशनी या चांदनी रात में नृत्य गीत चलता है तो पूरे गांव में मधु घुल जाता है। डमकच के कई भेद हो जातें हैं। जैसे — जशपुरिया, असममिया, झुमटा, एकहरिया, दोहरी आदि।।।।।।।।
डमकच कोमल भावों की नृत्य शैली है।यह प्रचलित डमकच राग पर आधारित होता है।इसे झारखंड से बाहर "डोमकच" भी कहा जाता है।इसकी पहचान बुचु,सोना,मैना,रैलो,सालो,किरे,नीरे जैसे स्वर पूरक ध्वनियों के प्रयोग से होता है। गायकों और नर्तकों की वेश -भूषा पूरी तरह पारंपरिक और श्रृंगार प्रधान होती है। इसमें भाग लेने वाली युवतियां अपने जूड़ो को डमरू के आकार में संवारती है। डम यानी डमरु के आकार में युवतियों के संवरे कच यानी केश - विन्यास के कारण इस नृत्य शैली का नामकरण ही डमकच हो गया।
डमकच को तीन रुपों में प्रस्तुत किया जाता है। पहिया सांझा में एकहरिया डमकच और दोहरी डमकच चलता है, लेकिन अधरतिया में एकहारिया और दोहरी डमकच का स्वरूप बदल जाता हैं।भिनसरिया में झुमटा डमकच चलता है। अवसर के अनुसार इसे दिन में भी प्रस्तुत किया जाता है। गायकों और नर्तकों कि संख्या कि कोई सीमा नही है। चूंकि यह सामूहिक नृत्य है, अतः आंगन के आकार पर निर्भर करता है। फिर भी इसमें कम से कम १५ युवतियों तो शामिल हो ही जाती है। संख्या अधिक बढ़ने पर दो दलों के स्थान पर कई कतारें बन जाती है। डमकच राग के गीत और नृत्य को संगीत देनेवाले वाद्य है — ढोल, नगाड़ा, ढांक,शहनाई,ढेचका, झांझ,करताल, मांदर, घुंघरू, मुरली,टोहिला,सारंगी,केंदारा, बांसुरी आदि। इसमें तीव्र तथा कोमल दोनों ही प्रकार के वाद्य यंत्र बाजए जातें हैं।आदिवासी का लाइवस्टाईल
जोहार

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2 टिप्पणियाँ
Good job...
जवाब देंहटाएंKeep writing
Thanks
हटाएंJohar