
आदिवासी में किस तरह प्रचलित है??
आदिवासियों में लिव -इन-रिलेशनशिप कि परंपरा देखी जाती है। लेकिन जिस तरह लिव -इन-रिलेशनशिप को परिभाषित किया जाता है उसके विपरीत है, क्योंकि आदिवासी में अपहरण विवाह का प्राचलन है, जिसमें पुरुष महिला को अपहरण करके घर ले के जाते हैं लेकिन उतना जल्दी भी सिंदुर दान नहीं किया जाता है कुछ दिन साथ में (लिव-इन-रिलेशनशिप) रहने के बाद शादी करते हैं।
इसमें सबसे ज्यादा आर्थिक समस्या का वजह से भी लिव-इन-रिलेशनशिप रहने में मजबूर हो जाते है।
झारखंड के आदिवासियों के लिए लिव-इन रिलेशनशिप क्यों है एक सामाजिक अभिशाप
इस विवाह की वजह से इनकी मजबूरी को सामाजिक कुरीतियों की ऐसी मार पड़ती है कि इन्हें समाज में ढुकू के नाम से बुलाया जाता है. सामाजिक समारोह में शामिल होने का अधिकार छीन लेते हैं और लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं.
एक पुरुष के साथ रिश्ते में रहना, बिना शादी किए अपने बच्चों को जन्म देना, बिना किसी सामाजिक स्वीकृति और कानूनी अधिकारों के यह झारखंड में एक आदिवासी परंपरा है,
आदिवासी जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में क्यों आते हैं?
झारखंड के आदिवासी गांवों में हजारों जोड़े लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं क्योंकि वे शादी के भोज का आयोजन करने में विफल रहते हैं.
आदिवासी लोगों में आर्थिक स्थिति कमजोर होने के वजह से भी ये कदम उठाते है।
हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप में जोड़े को कभी भी परेशान नहीं किया जाता है लेकिन उन्हें कभी भी वह सम्मान नहीं दिया जाता जिसके वे हकदार हैं.
इस रिश्ते से पैदा हुए किसी भी बच्चे को भी सामाजिक रूप से मान्यता नहीं दी जाती है
आदिवासी सदियों से गरीबी के कारण बुनियादी सामाजिक मान्यता और सम्मान से वंचित रहे हैं.
इन जोड़ों के आम तौर पर पांच से आठ बच्चे होते हैं. जब आपके इतने सारे बच्चे हों तो शादी को प्राथमिकता के तौर पर नहीं देखा जाता. जब ऐसे जोड़ों को आखिरकार शादी करने का साधन मिल जाता है तो ग्रामीणों का कड़ा विरोध होता है क्योंकि उनके लिए यह उत्पीड़न का अंत है.
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप की स्थिति
लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों की कानूनी स्थिति भारतीय विधायिका में अनिश्चित बनी हुई है. हालांकि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के माध्यम से कुछ राहत मिली है.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार एस खुशबू बनाम कन्नियाम्मल (2010) के मामले में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत संरक्षित “घरेलू संबंधों” के रूप में वर्गीकृत करके लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी थी.
कोर्ट ने माना कि लिव-इन रिलेशनशिप भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित जीवन के अधिकार के दायरे में आता है.
इस तरह अपनी मर्जी के व्यक्ति के साथ शादी करने या लिव-इन रिलेशनशिप रखने का अधिकार और पसंद की स्वतंत्रता इस अपरिहार्य मौलिक अधिकार से निकलती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कानून और नैतिकता के बीच अंतर का सीमांकन किया और व्यक्त किया कि भले ही लिव-इन रिलेशनशिप को समाज द्वारा अनैतिक माना जाता है लेकिन यह न तो अवैध है और न ही अपराध है.फिर भी जोड़ों को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं दी जाती है क्योंकि राज्य कानूनी रूप से रिश्ते को मान्यता नहीं देता है.


8 टिप्पणियाँ
kya baat Hai .......
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏
हटाएंUrban living in relationship and indigenous living in relationship both are different , in aborigines communities living in relationship is not being permitted hitherto, for that if a couple live together they are considered as husband and wife and they can have children . Thus both are treated as husband and wife by their own community , social problem arises when the children grow up and mature enough for marriage , his mother- father have not given the social penalty, otherwise don't face any social restrictions. I have no knowledge of Jharkhand but I know about some parts of Orissa,Chhattisgarh especially Baster Sarguja and Madhyapradesh and Tribal belt of Mahabharata.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आप ने,,,,, लेकिन आज जो परिभाषित किया जा रहा है उसे आदिवासी समाज बहुत गहरा असर पड़ रहा है क्योंकि ये परंपरा आदिवासी में पाई जाती है लेकिन आज जिस दृष्टि से देखा जाता है वह उस समय आज के दृष्टि नहीं देखा जाता था।आज भी कहीं कहीं ऐसा घटना घटित हो जाता है तब इस तरह का समस्या देखना मिलता है आदिवासी में शादी तो कर लेते लेकिन शादी रस्म पुरा नही किया जाता है उसके और किसी दिन जब अपना आर्थिक स्थिति ठिक कर लेता तब खुशी खुशी सारी रस्में निभाई जाती है
हटाएंMostly seen in love marriage
हटाएं🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं👍👍👍
हटाएं🙏🙏🙏👌
जवाब देंहटाएंJohar